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Wednesday, April 25, 2012

व्यंग्य: है कोई माई का लाल?



अब इसे चुटकुला कहें या रोचक घटना। सुना है अमेरिका के वैज्ञानिको द्वारा चोर पकड़ने वाली मशीन बनायी गयी। उसने अमेरिका में एक घंटे में 70 चोर पकड़े। आस्‍ट्रेलिया वालों ने उसे चैक किया तो हैरान रह गये क्‍योंकि उनके यहां उसने एक घंटे में ही 90 चोर पकड़ डाले। चीन ने भी  उसे आजमाया और पाया कि मशीन हर घंटे सौ-सौ चोर पकड़ रही है। विदेशियों की ये तरक्‍की देखकर भारत में भी मशीन मंगवाने की योजना बनाई गयी। योजना बनी और मशीन आ भी गयी। पर ये क्‍या... आते ही मशीन गायब....
काफी खोजबीन के बाद पता चला कि मशीन चोरी हो गयी है। अब मशीन को चोर नहीं छोड़ना चाहता और मशीन, मशीन-चोर को। दोनों एक दूसरे को पकड़े हुए हैं और जकड़े हुए हैं। न मशीन मिल रही.... न चोर....। विचित्र स्थिति पैदा हो गयी है। इससे भी ज्‍यादा विचित्र ये है कि कोई भी इस मशीन को ढूंढना नहीं चाहता। मैं भी नहीं.... बता रहा हूं...क्‍यों
बचपन में एक दिन मैंने पड़ौसी के दूध की मलाई चुराकर खाई थी। मेरी उस गरम दूध से उंगलियां भी जल गयीं थीं। पिटाई हुई मेरे एक मित्र की। समझ गये..... मैं उस भेद को क्‍यों खुलने दूं.... साथी की नाराजगी क्‍यों मोल लूं। दूसरा नंबर है मेरी बीवी का, वह भी मशीन मशीन को तलाशना नहीं चाहती क्‍योंकि उसने भी तीस साल पहले मेरा दिल चुराया था। सिर्फ दिल ही नहीं उसने तो मुझे पूरा ही चुरा लिया था। उसे डर है कि कहीं मशीन उस मशीन-चोर को छोड़कर उसे न पकड़ ले।
तीसरा नंबर है मेरे देश की पुलिस का, जो समाज में कानून व्‍यवस्‍था कायम करती है। लेकिन हमारी भारतीय पुलिस समझदार है, क्‍यों फटे में पांव डाले। आप सब जानते हैं.... क्‍यों मुझसे, सच्‍चाई से पर्दा उठवाना  चाहते हो...। मैं आप ही से पूछता हूं... है कोई, जो अचोर हो.... । देश का सौभाग्‍य है कि देश के लीडरान, प्रदेशों के मुखिया भी इस केस में कोई दिलचस्‍पी नहीं ले रहे हैं। वरना.... कौन बचता लीडरी को....देश लीडरविहीन हो जाता..। कौन  शर्मसार करता गिरगिट को... रंग बदलने में लीडरों ने ही तो गिरगिट का एकाधिकार तोड़ा है।
इधर मशीन, न रिश्‍वत लेती न शिफारिश मानती। देश की जेलें वैसे ही फुल हैं। सब मन ही मन वैज्ञानिकों को कोस रहे हैं कि, कुछ ज्‍यादा ही खतरनाक मशीन बना डाली है। इतने खतरनाक तो परमाणु हथियार भी नहीं हैं। कायदे से तो वैज्ञानिको को ऐसी मशीन ईजाद करनी चाहिए जिससे शरीफ आदमियों को पकड़ा जा सके। न जाने.... कब कोई शरीफ आदमी खतरा पैदा  कर दे। मशीन को ढूंढने का बीड़ा उठा ले...;।
     मैंने अपने अड़ौस-पड़ौस में ढिंढोरा पिटवा दिया है, मुनादी करा दी है कि, आये कोई माई का लाल सामने, जो इस विदेशी करतूत को तलाशने की चुनौती स्‍वीकार करे, और उस मशीन-चोर की जान बचाने का शुभ कार्य संपन्‍न करे तथा मशीन द्वारा स्‍वयं के पकड़े जाने से न डरे। मैंने ऐसा कर तो दिया है लेकिन अब सभी मौहल्‍ले वाले कन्‍नी काटने लगे हैं। मुझे देखकर ऐसा व्‍यवहार करते हैं कि जैसे उन्‍होंने मुनादी सुनी ही न हो। सो....पाठको .... है कोई.... मुनादी सुनने वाला और उस पर अमल करने वाला...।।।



8 comments:

  1. पवन अंकल न तो कोई माई का लाल और न ही कोई माई की लाली इस मशीन को ढूढ़ पाएगी. :)

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    1. कलम घिस्सी की बात से सहमत हूँ...

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  2. चोर चोर मौसेरे भाई. हुई कहावत बड़ी पुरानी |

    सम्बन्ध सगा यह सबसे पक्का, झूठ कहूँ मर जाये नानी ।

    जिसने आर्डर दिया दिलाया, जो लाया झेले गुमनामी ।

    पुर्जे पुर्जे हुआ कलेजा, हुई मशिनिया बड़ी सयानी ।

    सौ प्रतिशत का छुआ आंकडा, होने लगी बड़ी बदनामी ।

    कम्बख्तन को पडा मिटाना, इसीलिए भैया जी दानी ।।

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  3. यह मशीन जरुर १० जनपथ में मिल जायेगी क्योंकि वहा की जानकारी भी किसी को मालूम नही है जैसे वो संसार की सबसे चोथी अमीर महिला कैसे बनी ,आय का क्या साधन है,उनको क्या बीमारी है ,किस हॉस्पिटल में गई थी वो शायद उनका भांडा ना फूट जाए उन्होने ही चोरी करवाई होगी

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  4. मशीन, न रिश्‍वत लेती न शिफारिश मानती। देश की जेलें वैसे ही फुल हैं। सब मन ही मन वैज्ञानिकों को कोस रहे हैं कि, कुछ ज्‍यादा ही खतरनाक मशीन बना डाली है। इतने खतरनाक तो परमाणु हथियार भी नहीं हैं। कायदे से तो वैज्ञानिको को ऐसी मशीन ईजाद करनी चाहिए जिससे शरीफ आदमियों को पकड़ा जा सके। न जाने.... कब कोई शरीफ आदमी खतरा पैदा कर दे। मशीन को ढूंढने का बीड़ा उठा ले...;।

    सुन्दर लेख.

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निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
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