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Friday, October 18, 2013

कविता: क्या हो तुम ?

क्या हो तुम ?
सारे अपनों की आस हो तुम,
माँ के लिए ममता हो,
पिता के कन्धों का सहारा हो तुम, 
सब कुछ, जब तक जिन्दा हो तुम,

छोड़ दो खुद को खुला,
उड़ने दो सपनो को आसमान में,
क्या पता कब तक हो तुम,
सब कुछ, जब तक जिन्दा हो तुम,

कहाँ तक जायेगा, मन का पंछी,
दुनिया तो एक छोटा पिंजरा है,
जहाँ हर पल कैद हो तुम,
सब कुछ, जब तक जिन्दा हो तुम,

रंग दो जीवन के कोरे कागज को,
ये कागज कल जल न जाये,
वक़्त की बारिश में गल न जाये,
जियो खुल कर जिंदगी को तुम,

सब कुछ, जब तक जिन्दा हो तुम,
फिर बस एक मुट्ठी राख हो तुम.
                      
कुलदीप सिंह राठौर


नागौर, राजस्थान 


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