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Saturday, January 13, 2018

सीमा पर संबंधों के दो अलग रंग

हमारे देश की  उत्तरोतर उन्नति ने विश्व की सभी शक्तियों के बीच हमारी एक अलग पहचान कायम की है.यह पहचान हमें अपनी प्रगति और विकास के साथ साथ अपनी वैश्विक उदारता की वजह से भी प्राप्त हुई है.हमारा देश अब विकासशील देश की परछाई से उबरकर वैश्विक शक्ति के तौर पर उभारने की ओर अग्रसर है.यही कारण है हम अपने सभी पड़ोसी देशों से संबंधों को एक नयी दिशा में ले जा रहे है. सभी पड़ोसी देशों के साथ व्यापार ,परिवहनआपदा स्थिति में आगे बढ़कर सहायता द्वारा हम नयी इबारत लिख रहे है.आज के समय में अपने संसाधनों से खुद का विकास तो हर राष्ट्र  करता हैपर उस से दूसरे राष्ट्रों की सहायता का दृढ निश्चय सिर्फ हमारे देश का है.                                                                                                                                 
इसी श्रृंखला में जो बात सबसे पहले ध्यान आती हैवो नेपाल की हैअभी  कुछ समय पूर्व नेपाल में भीषण भूकंप के तौर पर प्राकृतिक आपदा आई थी. वैसे उस से हमारे भी कुछ राज्य प्रभावित हुए थेपर हमने अपनी विपदा भूलकर तत्काल नेपाल को सभी तरह से मदद प्रदान कीइसी तरह हमारे एक और पड़ोसी श्रीलंका में भी विपदा आने पर हमने एक जागरूक मददगार दोस्त की  भूमिका निभाई.मालद्वीव को विद्रोह से बचाने और अफगानिस्तान की हर स्थिति में मदद जैसे अनेक उदाहरण है जो भारत की मददगार भूमिका को चिन्हित करते हैं. इसी तरह हम अपने सभी मित्रवत देशों के साथ सदैव प्रगति की ओर साथ साथ कदम बढ़ने का माद्दा रखते है. पर क्या सभी देश हमारी इस कोशिश में भागीदार बनना चाहते है शायद नहीपर आप सोचेंगे कि मैंने नही क्यों कहातो उसके कुछ कारण है जैसे सभी देश हमारे साथ सम्बन्ध बनाना तो चाहते हैपर उनकी नियत साफ़ नही,वे वैश्विक मंच पर खुद को पाक-साफ दिखाते है पर परदे के पीछे हर ओर से हमारी वैश्विक छवि को धूमिल करने में लगे रहते है. वे चाहते है कि उनके मित्रवत मुखौटे में उलझकर हम उनके सभी करनामों को दरकिनार करते चलेपर ये किस तरह सम्भव हैजब अन्य सभी देश हमारे साथ वैश्विक प्रगति की नई परिभाषा लिखने तत्पर है. ऐसे में आस्तीन के सांप जैसा व्यवहार करने वाले  मित्र वसुदेव कुटुम्बकम की हमारी संस्कृति को कही ना कही पूर्णता की ओर ले जाने में बाधक हैअपनी बात को और  स्पष्ट करने के लिए  अगर हम दो देशों कि मित्रता का तुलनात्मक आकलन करें तो अंतर साफ़ दिखाई पड़ता है,खासतौर पर जब बात हमारे दो पड़ोसियों बांग्लादेश और पाकिस्तान की हो.
जहाँ  दोनों देशों की सीमाएँ हमारी देश की सीमा से जुड़ी है ,वही दोनों सीमाओं पर स्थिति भी अलग अलग होती हैएक ओर सीमा पर प्रतिस्पर्धा का माहौल बना रहता है,वही दूसरी ओर मित्रवत माहौल
है,जहाँ एक सीमा पर प्रतिस्पर्धा का माहौल देखकर जब लोग दूसरी सीमा पर पहुँचते हैं तो  दूसरी सीमा पर बना  मित्रवत माहौल देख कर अचरज में पड़ जाते हैपाकिस्तान और भारत की वाघा सीमा अमृतसर के पास है,जहाँ प्रतिदिन फ्लैग लोवरिंग सेरेमनी (ध्वज उतारने का समारोह) होती है,जो है तो एक सामान्य प्रक्रिया पर यहाँ भी कही ना कही प्रतिष्ठा और प्रतिस्पर्धा का माहौल साफ़ दिखाई देता है . हमारे सैनिक इस समारोह में प्रतिभागी बनकर अपने ही शरीर को कष्ट पहुचाते हुए भी पीछे नही रहना चाहते.कुछ तो हमेशा के लिए शारीरिक तौर पर अक्षम तक हो जाते हैं  लेकिन वे किसी भी तरह  उस प्रतिस्पर्धा पर केन्द्रित समारोह में अपनी श्रेष्ठता साबित में पीछे नहीं रहना चाहते और यह कोई एकतरफा नहीं है बल्कि सीमा के दूसरी ओर भी यही हाल है. इस तरह सीमा पर जहां मित्रवत माहौल होना चाहिएवहां मुकाबले  की कसौटी ने इसे एक विकृत रूप दे दिया है.दोनों सरकारों के प्रयास भी नाकाफी साबित हो रहे है,और पाकिस्तान ने तो हर बार मित्रता के प्रयासों को शर्मसार किया है वो अपने संसाधनों का प्रयोग अपने विकास या अपने नागरिकों का भविष्य सवारने में करने के स्थान पर भारत विरोधी क्रियाकलापों में करने लगा है .इस से एकदम भिन्न हालात भारत बंगलादेश की अखौरा सीमा पर हैं. यहाँ भी अभी कुछ समय पहले ही फ्लैग लोवरिंग सेरेमनी की शुरुआत हुई है.अखौरा सीमा पर जहाँ वाघा सीमा से भिन्न वातावरण नजर आता है ,इस सीमा पर हम मित्रवत माहौल को एक नए रूप में देख पाते है,जहाँ खुशहाल वातावरण में यह समारोह  हमे दोस्ती का एक नया आयाम प्रदर्शित करता है..क्या हमारे सभी पड़ोसीदेश और खासतौर पर पकिस्तान अपनी सीमा पर ऐसे ही मित्रवत माहौल को आगे नही बढ़ा सकते,हमारे प्रयासों में सहयोगी बनकर हमारे पड़ोसी दोस्ती और विकास की नयी परिभाषा लिखकर वसुदेव कुटुम्बकम को साकार करने में सहभागी नहीं बन  सकते . यदि ऐसा हो गया तो एशिया के यूरोप जैसा संपन्न बनने में देर नहीं लगेगी और हम सब साथ मिलकर विश्व मंच पर अपनी सशक्त मौजूदगी दर्ज करा सकते हैं.

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निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
संपादक- सादर ब्लॉगस्ते!